15 अगस्त पर रामदीरी की धरोहरों की सूची जारी की गई. कहानियाँ अब आमजन तक पहुँचेगी
👉 "यह विचार रामदीरी परिवार की टीम का है, जिसे ‘रामदीरी दर्शन परिवार’ की मन की बात में साझा किया गया है

स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर ग्राम रामदीरी की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों की सूची जारी की गई। ग्राम की समृद्ध परंपरा और विरासत को संरक्षित करने के उद्देश्य से यह पहल की गई है। धरोहरों से जुड़ी कहानियाँ क्रमशः लोगों के सामने प्रस्तुत की जाएँगी, ताकि नई पीढ़ी अपने अतीत से जुड़ सके और गाँव की पहचान को और सशक्त बना सके।
पुस्तक की लगभग 80 प्रतिशत सामग्री हमारे पास उपलब्ध है.शेष 20 प्रतिशत जानकारी अभी संकलन एवं शोध की प्रतीक्षा में है. हमारा प्रयास रहेगा कि उस अधूरी जानकारी को भी एकत्र कर पुस्तक को पूर्णता प्रदान किया जाए. जब तक यह अंतिम अंश जुड़ नहीं जाता.तब तक यह कीर्ति मोटे तौर पर तैयार मानी जा सकती है परंतु संपूर्ण नहीं पूर्ण जानकारी और तथ्यों के समावेश के साथ ही यह पुस्तक अपने वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य की पूर्ति कर सकेगी
🤔🤔🤔कुल मिलाकर. गाँव की इतिहास पुस्तक तैयार करना.गाँव की आत्मकथा लिखने जैसा है – जिससे गाँव की पहचान, परंपरा और योगदान कभी खो न जाए🤔🤔🤔
छोटा ↔ बड़ा
रात ↔ दिन
सुख ↔ दुख
काला ↔ सफेद
यानि जिन शब्दों के अर्थ एक-दूसरे के विपरीत (उल्टे) हों.उन्हें विलोम शब्द कहते हैं
आज की चर्चा विलोम शब्द से ली गई है
और प्रेरणा मोदी जी के मन की बात से ली गई हैं
यहां रामदीरी परिवार अपने मन की बात रख रही हैं
साहित्य चर्चा की नकल विलोम शब्द से ली गई है पाठक गण को एक बात बता दूं कि रामदीरी परिवार समूह मे जो चर्चा होती है उसका विचार सही और 100% हो और कहानी मे (भाव, गहराई)आ सके
कभी हिलते पत्तों से की जाती है, कभी बहते पानी से, कभी किसी लेखक की लेखनी से तो कभी यूट्यूबर की मोटिवेशन से… लेकिन उद्देश्य हमेशा यही रहता है कि किसी के ज़ख्मों के काटे पर मरहम बन सके
जख्मो के काटे ) ये शब्द आते ही कहानी मे ट्विस्ट आ गई. भूले बिसरे यादो मे किसी साहित्यकार की बात याद आ गई
एक बुद्धिजीवी व्यक्ति और साहित्यकार ने किसी और की लिखी पुस्तक पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “जख्मों के टांके पुस्तक लेखक के अपने ही घावों पर मरहम लगा रहे हैं।” उनकी दृष्टि में उस पुस्तक को न तो कोई पढ़ने वाला है और न ही लेखक का कोई नाम जानता है।
फिर भी ऐसा कहने वाले लेखक से मैं प्रभावित हूँ, क्योंकि उनकी बातें हमेशा स्पष्ट रहती हैं और उनमें गहरा अनुभव झलकता है।
जैसा की मैंने पहले ही बताया है की हमारी बात रेडियो प्रसारण जैसे चलेगी और ये अधिकार( मन की बात )से ली गई हैं जैसे रेडियो के सामने मोदी जी की बातो को बिना देखे टकटकी लगाए सुनते हैं और कुछ लोग नहीं भी सुनते. फिर भी हमारे प्रधानमंत्री को कोई फर्क नहीं पड़ता इसी तरह उन्ही के नक्से कदमो रामदीरी परिवार बेफिक्री से अपनी बात रख रही है




