
बिहार के बेगूसराय जिले के राजौरा गांव की पवित्र भूमि ने कई संत महापुरुषों को जन्म दिया है। उन्हीं में से दो महान संत थे – वेदनती जी महाराज और काशी जी महाराज। ये दोनों भूमिहार ब्राह्मण परंपरा से आए ऐसे संत थे जिन्होंने लोक कल्याण, आत्मसंयम और त्याग की मिसाल पेश की।
इन संतों का जीवन ही उनका संदेश था। वे सादगी, संयम और सेवा के प्रतीक थे। वे हम सभी को “कम खा, ग़म खा” का मंत्र सिखाया करते थे। इस छोटे से वाक्य में जीवन का गूढ़ दर्शन छिपा है।
“कम खा” – अर्थात संयम से भोजन करो, लोभ से नहीं। जितना आवश्यक हो, उतना ही ग्रहण करो। यही जीवन को स्वस्थ और मन को संतुलित रखने की कुंजी है।
“ग़म खा” – अर्थात जीवन के दुखों को धैर्यपूर्वक सहन करो। संघर्षों से मत डरो, बल्कि उन्हें आत्मबल से स्वीकार कर आगे बढ़ो।
उनकी वाणी में सरलता थी, पर विचारों में गहराई। वे समाज को यह सिखाते थे कि सच्चा साधक वही है जो अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखता है और दूसरों के दुख को समझता है।
आज जब भौतिकता और भोग की अंधी दौड़ में लोग आत्मिक शांति खोते जा रहे हैं, ऐसे समय में वेदनती जी और काशी जी जैसे संतों की शिक्षाएं और भी प्रासंगिक हो जाती हैं।
राजौरा के इन संतों की याद हमें यह सिखाती है कि संतुलित जीवन ही सच्चा जीवन है।



