रत्न वही नहीं जो धरा में छिपा हो, रत्न वह भी होता है जो समाज के बीच चमकता हो – कर्म से, विचार से, सेवा से
रामदीरी केवल एक गाँव नहीं, यह मेरी आत्मा है।"

पहले पराव में इस यात्रा की नींव रोहित जी के नेतृत्व में रखी गई। रामदीरी के लिए उनका लगाव मात्र औपचारिक नहीं, वह तो उनके जीवन का हिस्सा है। उनकी ईमेल आईडी में भी ‘रामदीरी’ शामिल है। एक देश -विदेश में रहने वाला व्यक्ति जो अपने दैनिक जीवन के सबसे निजी हिस्से में भी रामदीरी को स्थान देता है, उससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता।
रामदीरी की सेवा हो, उसका गौरव बढ़ाने की बात हो या उसकी अच्छाई को उजागर करने का प्रयास – रोहित जी सदैव सबसे आगे खड़े मिलते हैं। उनका यही निस्वार्थ प्रेम, समर्पण और नेतृत्व उन्हें आज के रामदीरी रत्नों की अग्रपंक्ति में स्थान देता है।
*बाटो भाई (राजीव)* – वर्तमान के युवा,
इनका रामदीरी दर्शन के इतिहास पुस्तक मे
दूसरे पराव में आगे बढ़ने, विचार, मार्गदर्शन महत्वपूर्ण योगदान सामने आया – राजीव उर्फ बाटो भाई, पिता श्री शंकर सिंह जी, जो नौकाटी के निवासी हैं।
उनसे हुई बातचीत किसी साधारण चर्चा जैसी नहीं थी, वह एक दर्पण की तरह थी – जिसमें हमने देखा कि “रामदीरी का रत्न” कौन और क्यों हो सकता है
राजीव जी ने अपने अनुभवों से हमें यह समझाया कि रामदीरी का रत्न वह नहीं जो सिर्फ प्रसिद्ध हो, बल्कि वह है:
जो गाँव के लिए चिंतन करता है,
जो समाज को जोड़ता है,
जो बिना नाम चाहे सेवा करता है,
और जो हर संकट में रामदीरी की ढाल बनकर खड़ा हो।
उनकी बातें हमें यह सोचने पर विवश कर गईं कि हमने अब तक रत्नों को केवल अतीत में खोजा, जबकि रत्न तो वर्तमान में हमारे बीच हैं—साधारण चेहरों में है वे गाँव की गलियों में चलते हैं, सेवा करते हैं, और अपनी मिट्टी से जुड़ाव को आत्मगौरव मानते हैं।
*यह पराव केवल वर्णन नहीं, एक पहचान की पुनःस्थापना है।*