
बस्तर ओलंपिक का उद्देश्य था — ग्रामीण प्रतिभाओं को आगे लाना, खेल के माध्यम से एकता और भाईचारे का संदेश फैलाना।
पर सुकमा से आई तस्वीरें कुछ और कहानी बयां कर रही हैं।
जहाँ खिलाड़ियों की चर्चा होनी चाहिए थी,
वहाँ राजनीतिक चेहरे और मंच की मर्यादा सुर्खियों में हैं।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों को जिस तरह सम्मान की बजाय उपेक्षा का सामना करना पड़ा, उसने पूरे आयोजन की भावना पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह मामला अब केवल सुकमा जिले तक सीमित नहीं रहा —
यह पूरे बस्तर की अस्मिता और सम्मान से जुड़ गया है।
जनता अब सीधा सवाल पूछ रही है
👉 “बस्तर के नाम पर वोट चाहिए या बस्तर का मान-सम्मान?”
खेल भावना जहाँ एकता का प्रतीक होती है,
वहीं राजनीति अगर उसके बीच आ जाए —
तो जीत किसी की नहीं, हार पूरी व्यवस्था की होती है।




