
राजनीति केवल दो गठबंधनों की लड़ाई तक सीमित नहीं रह गई है — अब मैदान में कई नए खिलाड़ी भी उतर चुके हैं। प्रशांत किशोर की पार्टी, जो अब खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रही है, पूरी तैयारी के साथ मैदान में है। एआईएमआईएम भी अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है। वहीं तेज प्रताप यादव ने अपनी अलग पार्टी बनाकर मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि चुनाव का असली मुद्दा – बिहार की समस्याएं, विकास, बेरोज़गारी और शिक्षा — इन सब पर कोई भी दल गंभीरता से बात नहीं कर रहा।
चर्चा सिर्फ इसी बात की हो रही है कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, किसे कहाँ से टिकट मिलेगा और कहाँ जीत की संभावना ज़्यादा है।
नतीजा यह कि बिहार के असल मुद्दे फिर से राजनीतिक गणित और सीटों की सौदेबाज़ी में कहीं खोते जा रहे हैं।


