
ठूठी सिराजपुर के आध्यात्मिक रत्न
श्री चक्रपानी दास जी, एक ऐसे विरल संत जिनका जन्म तो ठूठी सिराजपुर गांव की पवित्र भूमि पर हुआ, लेकिन उनकी ख्याति आध्यात्मिक लोक तक फैली। वे रामदीरी के श्रद्धागुरु श्री शत्रुघ्न दास जी के शिष्य थे और गुरु-भक्ति के आदर्श उदाहरण बने।
गुरु-शिष्य परंपरा की जीवंत मिसाल
श्री चक्रपानी दास जी ने गुरु श्री शत्रुघ्न दास जी के सान्निध्य में न केवल धर्म का गहन अध्ययन किया, बल्कि स्वयं को साधना, सेवा और त्याग में पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया।
वे गुरु वचन को जीवन का अंतिम सत्य मानते थे और उसी राह पर चलते हुए उन्होंने परमहंस की सिद्धि प्राप्त की।
“गुरु ही ब्रह्म है, गुरु ही आत्मा – चक्रपानी दास जी का संपूर्ण जीवन इसी मंत्र का साक्षात रूप था।”
परमहंस की सिद्धि – आत्मज्ञान की चरम स्थिति
“परमहंस” की उपाधि किसी साधारण संत को नहीं दी जाती। यह सिद्धि उस आत्मा को प्राप्त होती है जो इंद्रियों पर विजय, मन पर नियंत्रण, और आत्मा में परमात्मा का साक्षात्कार कर लेती है।
श्री चक्रपानी दास जी ने कठोर तप, मौन साधना और गुरुकृपा के बल पर यह सिद्धि प्राप्त की।
कहा जाता है कि उनकी दृष्टि मात्र से भक्तों के मन शांत हो जाते थे, और उनके वचनों में ऐसा तेज था कि लोग आत्म-परिवर्तन की राह पर चल पड़ते।
जीवन की विशेषताएँ:
- जन्मभूमि: ठूठी सिराजपुर, एक साधारण परिवार, लेकिन असाधारण उद्देश्य।
- गुरु: श्री शत्रुघ्न दास जी – जिनके चरणों में उन्होंने समर्पण के साथ साधना की।
- साधना: मौन तप, ग्रामीण सेवा, ईश्वर भक्ति और आत्मसंयम।
- लोकप्रियता: उन्हें एक दिव्य पुरुष माना जाता था, जिनके पास जाकर लोग मानसिक शांति पाते थे।
- शिष्यवृत्ति: उन्होंने भी आगे कई शिष्यों को धर्म और साधना की शिक्षा दी, लेकिन उन्होंने कभी स्वयं को ‘गुरु’ कहलवाना पसंद नहीं किया – वे स्वयं को आजीवन ‘गुरु-सेवक’ ही कहते रहे।
- गांव और समाज में योगदान:
- ठूठी सिराजपुर और आसपास के गांवों में धार्मिक जागरण का कार्य किया।
- उन्होंने आपसी झगड़ों में मध्यस्थ बनकर कई परिवारों को टूटने से बचाया।
- कई युवाओं को व्यसन, क्रोध और आलस्य से निकालकर सेवा व संयम की राह पर चलाया।
- उनके प्रवचन में धर्म के साथ-साथ कर्म, कर्तव्य और करुणा का स्पष्ट संदेश होता था।
श्री चक्रपानी दास जी केवल एक शिष्य नहीं थे, वे गुरु परंपरा की अमूल्य कड़ी थे।
उनका जीवन दर्शाता है कि जब शिष्य पूर्ण समर्पण से साधना करे और सच्चे गुरु का सान्निध्य प्राप्त करे, तो वह साधारण मानव भी परमहंस बन सकता है।
आज भी ठूठी सिराजपुर और रामदीरी में जब संत परंपरा की बात होती है, तो गुरु श्री शत्रुघ्न दास जी और शिष्य श्री चक्रपानी दास जी का नाम आदर और श्रद्धा से लिया जाता है।
“गुरु ने बीज डाला, शिष्य ने उसे तप से सींचा – और फला दिव्यता का वटवृक्ष।”