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मालेगांव ब्लास्ट केस: न्यायालय ने बरी किए सात आरोपी, ATS जांच पर तीखी टिप्पणी

‘गवाही नहीं, जबरदस्ती थी’

 

मुंबई | विशेष रिपोर्ट मोर माटी

मालेगांव ब्लास्ट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सात आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत के जज ए.के. लाहोटी ने महाराष्ट्र एटीएस (ATS) की जांच पर गंभीर सवाल उठाए हैं और गवाहों से जबरन बयान लेने की प्रक्रिया को न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक करार दिया है।

गवाहों की गवाही पर सवाल

फैसले में साफ कहा गया है कि अधिकांश गवाहों ने कोर्ट में यह स्वीकार किया कि उन्होंने अपने बयान स्वेच्छा से नहीं दिए थे। उन पर एटीएस अधिकारियों ने दबाव बनाया, डराया और यातना दी। 39 गवाह अपने पहले के बयानों से मुकर गए, जिनमें से एक ने दावा किया कि उन्हें कई दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया और जबरन कुछ नामों को लेने को कहा गया — जिनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित आरएसएस से जुड़े कई नेता शामिल थे।

‘गवाही नहीं, जबरदस्ती थी’

अदालत ने कहा:

“यह गवाही नहीं थी, बल्कि यह एक पूर्वनियोजित दबाव का नतीजा था। गवाहों के साथ अवैध तरीके अपनाए गए, जिससे पूरा केस ही संदेह के घेरे में आ गया।”

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं शुरू

फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में भी हलचल तेज हो गई है। विपक्षी नेताओं ने इस निर्णय को लेकर एनआईए और महाराष्ट्र एटीएस की भूमिका पर कठोर सवाल उठाए हैं। वहीं, कुछ पूर्व अधिकारियों का मानना है कि इस तरह की जांच पद्धति से आम जनता का न्याय व्यवस्था में विश्वास कमजोर होता है।

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