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गरीब की पत्नी बंधक और अमीर लुटेरे विदेश सुरक्षित!

ऐसे बनेगी ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था?

आज भारत को “ट्रिलियन डॉलर इकॉनॉमी” बनाने के सपने दिखाए जा रहे हैं। बड़े-बड़े मंचों से ये दावे किए जा रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ रही है, ग्लोबल पावर बन रही है, निवेश बढ़ रहा है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे एकदम उलट है।

क्या आपने कभी सोचा है कि इस ‘महाशक्ति बनने’ की दौड़ में गरीब कहां खड़ा है?

गरीब की बेबसी:

हाल ही में एक मामला सामने आया, जहाँ एक गरीब परिवार का बैंक ऋण समय पर न चुका पाने के कारण बैंक कर्मियों ने उसकी पत्नी को बंधक बना लिया। यह घटना सिर्फ एक उदाहरण नहीं है, बल्कि उस क्रूर व्यवस्था का प्रतिबिंब है जिसमें सामान्य नागरिक के मान-सम्मान की कोई कीमत नहीं बची

एक तरफ मामूली कर्ज़ के लिए गरीबों को अपमानित किया जाता है, उनकी जमीन कुर्क की जाती है, और परिवार की महिलाओं तक को शर्मसार किया जाता है। दूसरी तरफ…

धनकुबेरों को खुली छूट:

वही बैंक और वही व्यवस्था उन पूंजीपतियों के आगे लाचार दिखती है, जो हज़ारों करोड़ रुपये का कर्ज लेकर देश से भाग जाते हैं।
नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चौकसी, जैसे नाम आज आम लोगों के लिए प्रतीक बन गए हैं – उस व्यवस्था के, जिसमें कानून भी अमीरों के आगे नतमस्तक हो जाता है।

इनमें से कई भगोड़ों को देश छोड़ने में राजनीतिक संरक्षण मिला। भाजपा के शासन में ऐसे कई आरोप लगे कि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि जानबूझकर आंखें मूंद ली गईं।

नारी वंदना का कड़वा सच:

भाजपा मंचों से ‘नारी शक्ति’, ‘बेटी बचाओ’, ‘नारी वंदना’ जैसे नारे तो देती है, लेकिन जब असल ज़मीन पर किसी गरीब की पत्नी को कर्ज़ के बदले बंधक बना लिया जाता है, तब यह सब दिखावा लगता है।

नारी सम्मान की दुहाई देने वाली सरकारें और संस्थाएं उस समय मौन क्यों हो जाती हैं जब किसी महिला को सिर्फ इसलिए बंधक बनाया जाता है क्योंकि उसका पति बैंक लोन नहीं चुका सका?

क्या यह है ‘नए भारत’ की असल तस्वीर?

वास्तविक सवाल यह है:

  • क्या अर्थव्यवस्था का भार सिर्फ गरीबों के कंधे पर डाला जाएगा?
  • क्या ट्रिलियन डॉलर इकॉनॉमी की राह में इंसानियत, सामाजिक न्याय और संवेदनशीलता को भुला दिया जाएगा?
  • क्या ‘नारी सम्मान’ का नारा सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल होता रहेगा?

यदि सच में भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाना है, तो उसे आर्थिक न्याय, समानता और मानवता की बुनियाद पर खड़ा करना होगा। वरना यह विकास सिर्फ अमीरों के लिए एक सुनहरा महल होगा, जिसकी नींव गरीबों के आंसुओं पर रखी जाएगी।

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