न्याय की प्रतीक्षा में एक दशक: कमिश्नर का आदेश भी नहीं बना मिंटूपद राय के परिवार के लिए न्याय की गारंटी
जब कानून आमजन को न्याय न दिला सके, तो विश्वास उठना स्वाभाविक है

2006 में ली गई ज़मीन, 2021 में मिला आदेश, 2025 में भी नहीं मिला मुआवज़ा — सुकमा प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
सुकमा जिले के दोरनापाल निवासी मिंटूपद राय और उनके परिवार का मामला आज न्याय व्यवस्था और प्रशासनिक संवेदनशीलता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। यह परिवार वर्ष 2006 से लेकर 2021 तक न्याय के लिए तहसील से लेकर कमिश्नर कार्यालय तक संघर्ष करता रहा।
मामला दोरनापाल नगर पंचायत क्षेत्र का है, जहां ग्राम दोरनापाल, तहसील कोन्टा, जिला सुकमा स्थित मिंटूपद राय की निजी भूमि – खसरा क्रमांक 118/3 (रकबा 0.176 एकड़) और खसरा क्रमांक 124/294/2 (रकबा 0.292 एकड़) – पर शासन द्वारा बिना पूर्व सूचना के स्टेडियम का निर्माण कर दिया गया।
मुआवज़े के लिए बार-बार दरवाज़े खटखटाने के बाद अंततः वर्ष 2021 में कमिश्नर ने आदेश पारित किया। इसमें यह स्पष्ट कहा गया कि यदि शासकीय निर्माण के लिए निजी भूमि ली जाती है, तो वैधानिक प्रक्रिया के तहत मुआवज़ा या अदला-बदली द्वारा भूमि दी जानी चाहिए।
कमिश्नर का स्पष्ट निर्देश – प्रशासन की उदासीनता से नतीजा ‘शून्य’
कमिश्नर ने आदेश में कहा कि:
“यदि किसी शासकीय कार्य हेतु चयनित स्थल पर निजी भूमि आती है, तो उसे अधिग्रहण कर उचित मुआवजा अथवा भूमि का विकल्प प्रदान किया जाए।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि:
- मिंटूपद राय ने कलेक्टर को समय रहते आवेदन किया।
- अनुविभागीय अधिकारी ने तहसीलदार की रिपोर्ट को मानते हुए 2015 में कलेक्टर को मामला भेजा।
- कलेक्टर ने मामले को उलझाते हुए दोबारा अनावश्यक जांच में डाल दिया, जिससे 2014 से 2019 तक प्रकरण लटका रहा।
कमिश्नर ने कहा कि:
“प्रशासनिक कार्यवाही अपीलार्थी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने जैसी प्रतीत होती है। अपीलकर्ता का पक्ष भी दर्ज नहीं किया गया। यह त्रुटिपूर्ण, एकतरफा और अलाविधिसम्मत आदेश है।”
उन्होंने सुकमा कलेक्टर के आदेश को खारिज करते हुए यह निर्देशित किया कि मिंटूपद राय को अदला-बदली के माध्यम से भूमि आवंटित की जाए।
2021 में आदेश, 2025 में भी कोई कार्रवाई नहीं
कमिश्नर का आदेश दो वर्ष पूर्व पारित हुआ, लेकिन आज 2025 का मध्यकाल प्रारंभ हो चुका है — फिर भी मिंटूपद राय को न कोई मुआवजा मिला, न कोई वैकल्पिक भूमि। यह न केवल पीड़ित परिवार के अधिकारों का हनन है, बल्कि उच्च अधिकारी के आदेश की अवमानना भी है।
जनहित में मांगें:
- मिंटूपद राय को तत्काल मुआवज़ा अथवा वैकल्पिक भूमि का आवंटन किया जाए।
- कमिश्नर के आदेश की अवहेलना करने वाले अधिकारियों पर जांच व कार्रवाई हो।
- ऐसे मामलों में पीड़ितों को मानसिक प्रताड़ना की क्षतिपूर्ति देने का प्रावधान हो।
- भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी, त्वरित और मानवीय बनाया जाए।